पुराण साहित्य में मत्स्य पुराण एक विशिष्ट स्थान रखता है। वामन पुराण में प्राचीनता एवं वर्ण्य की दृष्टी से इस पुराण को सवश्रेष्ठ स्वीकार किया गया है - पुराणेषु तथैव मात्स्यम྄।
इसका रचना क्षेत्र नर्मदा मानना उचित है क्योंकि इसमें इस क्षेत्र का विस्तृत वर्णन किया गया है। नर्मदा नदी को प्रलयकाल में नाश्ता न होने वाली दिव्य नदी अंगीकार किया गया है और उसके किनारे पर स्थित दशाश्वमेध, भारभूति, कोटि आदि छोटे छोटे तीर्थों का भी वर्णन किया गया है।
इस पुराण में सात कल्पों का कथन है, नृसिंह वर्णन से शुरु होकर यह चौदह हजार श्लोकों का पुराण है। मनु और मत्स्य के संवाद से शुरु होकर ब्रह्माण्ड का वर्णन ब्रह्मा देवता और असुरों का पैदा होना, मरुद्गणों का प्रादुर्भाव इसके बाद राजा पृथु के राज्य का वर्णन वैवस्त मनु की उत्पत्ति व्रत और उपवासों के साथ मार्तण्डशयन व्रत द्वीप और लोकों का वर्णन देव मन्दिर निर्माण प्रासाद निर्माण आदि का वर्णन है।