डॉ. बृजेश कुमार शुक्ल
डॉ. बृजेशकुमारशुक्ल द्वारा लिखित "श्रीबालकृष्णभट्ट प्रणीत 'अलंकारसार समीक्षण' " नामक ग्रन्थ में दश अध्याय है। प्रथम अध्याय में अलंकारसार के रचयिता श्री बाल कृष्ण भट्ट के व्यक्तित्व तथा कर्तृत्व का अनुशीलन किया गया है। द्वितीय अध्याय में अनुसन्धेय ग्रन्थ का कालनिर्णय करते हुए उसके वर्ण्य-विषय का परिचय दिया गया है। तृतीय अध्याय का विवेच्य विषय है- अलंकारसारस्थ काव्यप्रयोजन, हेतु लक्षणादि विमर्श । 'शब्दार्थतत्त्वविचारसमीक्षा' चतुर्थ अध्याय में विवेचना का विषय है। इसमे शब्द शक्त्तियो का विमर्श और उनके भेदोपभेदो का विस्तृत निरूपण किया गया है। पञ्चम अध्याय में भेदोपभेदो के साथ ध्वनि काव्य की विवेचना की गयी है। षष्ठ अध्याय में गुणीभूतव्यङ्ग्य काव्य के भेदोपभेदो का भी विस्तृत निरूपण किया गया है। सप्तम अध्याय में काव्य दोषो का स्वरूप तथा उसके भेदो की समीक्षा की गयी है। काव्यगुणो की विवेचन अष्टम अध्याय का विषय है। इसमे काव्यशास्त्र के विभिन्न आचार्यो द्वारा स्वीकृत काव्य गुणो का उल्लेख करने के बाद अलंकारसार में निरूपित माधुर्यदि तीन गुणो का वर्णन और तदनन्तर दशविध काव्यगुणो का निरूपण किया गया है । अध्याय के अन्त में इन दश विध गुणो का मधुर्यादि तीन गुणो में अन्तर्भाव सिद्ध् किया गया है। शब्दालङ्कार तथा अर्थालङ्कार की समालोचना क्रमशः नवम और दशम अध्यायो में की गयी है। लेखक साधुवाद का पात्र है कि उसने यह समीक्षात्मक अध्ययन अत्यन्त निष्ठा तथा उच्च स्तरीयता के साथ प्रस्तुत किया गया है। काव्य शास्त्रीय ग्रन्थ की उत्कृष्टता तथा अध्ययन की गुणवत्ता के कारण इस ग्रन्थ के अवश्य प्रकाशित होना चाहिए। ग्रन्थ् के प्रकाशन से जहाँ काव्यशास्त्रीय विद्यर्थी उपकृत हो सकेगे, वही विद्वज्जनो के लिये भी यह ग्रन्थ् परमोपादेय हो सकेगा.इस काव्यशास्त्रीय समीक्षण में काव्यशास्त्र के आधुनिक कतिपय ग्रन्थो का आलोडन निश्चय ही अनुसन्धान ही उच्चस्तरीय प्रविधि का द्योतक है।