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श्रुति: स्मृति: सदाचार: स्वस्य च प्रियमात्मन:।
सम्यक् सङ्कल्पज: कामो धर्ममूलमिदंस्मृतं ।।
मनुष्यता के विकास का स्रोत, सान्स्कृतिक आधार तथा नैतिक निष्ठा श्रुतिसमृतियों मे देश, काल अवस्था भेद से बतायी गयी है। इसी को महर्षि याज्ञवल्क्य ने धर्म की जड़ बतायी है। अर्थात् श्रुतिस्मृति प्रतिपादित मार्ग का अनुसरण, सदाचरण, आत्मप्रेम (प्राणिमात्र मे एक आत्मा का ज्ञान) और शुद्ध संकल्प से जो इच्छा हो इसको धर्म का मूल बताया है।