मैथिल हरिहर उपाध्याय (1400 ईo) के भर्तृहरिनिर्वेद नाटक में राजा भर्तृहरि के प्रेमार्द्रहृदय में वैराग्य उत्पन्न होने की कथावस्तु वर्णित है. यह कथावस्तु भर्तृहरि के लोक प्रसिद्ध् चरित से बहुत विलक्षण है.
राजा ने रानी के इस कथन की परीक्षा ली कि अतिशय प्रेम वाली नारी प्रियतम के अत्यन्त वियोग की ज्वाला में दग्ध हो तत्क्षण ही मर जाती है. किसी के द्वारा झूठे 'राजा की मृत्यु' कहने पर रानी मर गयी. राजा उन्मत्त रूप से विलाप करने लगे. उनके शोक को किसी तरह शान्त न किया जा सका तो गोरक्षनाथ योगी द्वारा वैराग्य (निर्वेद) उत्पन्न करने से ही उनका हृदय शान्त हुआ.
शान्तरस यद्यपि नाटक में प्रधान नही होते हैं, फिर भी कवि का यह नवीन प्रयोग साहसिक है. शान्त की चरम अवस्था नही, वरन् अन्य भावो के प्रध्वन्स होने के क्षण में चित्त को उद्वेलित करने के बहुत अवसर होते हैं - जो इस नाटक को देखने से स्पष्ट होगे. अनेक व्याख्या के साथ इसका सुसंपादित संस्करण परम उपादेय है.