वर्तमान शिव पुराण नैमिष्यारण्य उपस्थित मह्रर्षि व्यास तथा अन्य ऋषियों सनत्कुमार द्वारा सुनाया गया। २३ ००० पद्य हैं।
शिव पुराण एक अर्वाचीन रचना है। यह शैव धर्मानुयायियों के लिए नियमों तथा स्तुतियों का ग्रन्थ माना जाता है। कुछ विद्वान इसे उपपुराण की श्रेणी में रखते हैं। परंतु इसके महत्व उपयोगिता तथा विभिन्न ग्रंथों में प्राप्त उदाहरण इसे महापुराणों में रखना अनुचित न होगा। बल्लाल्सेन ने दानसागर में तथा अरबी यात्री अल बरुनी पुराण का उल्लेख किया है। इस पुराण की सात संहिताएं मानी हैं। ये हैं - विश्वेश्वर, रूद्र, शतरुद्र , कोटिरुद्र , उमा. कैलाश तथा वायवीय। विश्वेश्वर संहिता १८ अध्यायों में विभक्त है। इसमें साध्य साधन निरूपण , माननादि स्वरुप कथन, लिंग पूजा, तेजोमयशिवलिंग प्रादुर्भाव , शिवसृष्टि वैभव , ब्रह्मा का शिरश्छेद , ब्रह्मा पर शिव का अनुग्रह , ब्रह्मा और विष्णु की शिव पूजा, लिंग निर्माण तथा प्रतिष्ठा , शिवक्षेत्रमाहत्मय, ब्राह्मणों का सदाचार , नित्यकर्तव्य कथन ,पार्थिव प्रतिमा पूजाविधि प्रणव - षडलिंग महात्मय , बंधन और मोक्ष का स्वरुप कथन , लिंगकर्मकथन आदि हुआ है। रुद्ररुद्रसंहिता में रूद्र संबंधी विषयों का वर्णन मिलता है। इसके सृष्टि , सती , पार्वती , कुमार एवं युद्ध नामक पांच भाग हैं। रूद्र संहिता के पार्वती भाग में जो वर्णन है वह इस पुराण को कुमारसंभव सदृश प्रकट करता है। शतरुद्र संहिता में १२ ज्योतिर्लिंगों का उल्लेख है जो रूद्र के अवतार हैं। यहाँ उनका वर्णन गया है। कोटिरुद्र में एक सहस्र नाम दिए गए हैं। कैलाश संहिता में पूजा के मंडल का वर्णन है तथा कतिपय मुद्राओं एवं न्यासों की व्यवस्था की गयी है। उमा संहिता में ज्योतिर्लिंग प्रादुर्भाव, विष्णुकृत शिवस्तव , संक्षेप में दाक्षायणों देहत्याग , शिव पूजा विधि तारक उपाख्यान , शिवतप , पार्वती तपस्या, हरपार्वती संवाद , शिव विवाह, गणेश शिश्छेदन , गणेश विवाह , शिवलिंग महात्मय आदि विषयों का वर्णन हुआ है। वायवीय संहिता के दो खण्ड हैं - पूर्व खण्ड एवं उत्तर खण्ड।