वायु महापुराण

वायु महापुराण
Product Code: ISBN 81-7081-064-7
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इस पुराण में वायुदेव ने श्वेतकल्प के प्रसंगों में धर्मों का उपदेश किया है। इसलिये इसे #वायु #महापुराण कहते है। इस पुराण में इसमें ११२ अध्याय एवं ११,००० श्लोक हैं। विद्वान लोग 'वायु पुराण' को स्वतन्त्र पुराण न मानकर 'शिव पुराण' और 'ब्रह्माण्ड पुराण' का ही अंग मानते हैं। परन्तु 'नारद पुराण' में जिन अठारह पुराणों की सूची दी गई हैं, उनमें 'वायु पुराण' को स्वतन्त्र पुराण माना गया है. इसमें खगोल, भूगोल, सृष्टिक्रम, युग, तीर्थ, पितर, श्राद्ध, राजवंश, ऋषिवंश, वेद शाखाएं, संगीत शास्त्र, शिवभक्ति, आदि का सविस्तार निरूपण है।

यह पूर्व और उत्तर दो भागों से युक्त है। जिसमें सर्ग आदि का लक्षण विस्तारपूर्वक बतलाया गया है, जहां भिन्न भिन्न मन्वन्तरों में राजाओं के वंश का वर्णन है और जहां गयासुर के वध की कथा विस्तार के साथ कही गयी है, जिसमें सब मासों का माहात्मय बताकर माघ मास का अधिक फ़ल कहा गया है जहां दान दर्म तथा राजधर्म अधिक विस्तार से कहे गये है, जिसमें पृथ्वी पाताल दिशा और आकाश में विचरने वाले जीवों के और व्रत आदि के सम्बन्ध में निर्णय किया गया है, वह वायुपुराण का पूर्वभाग कहा गया है। मुनीश्वर ! उसके उत्तरभाग में नर्मदा के तीर्थों का वर्णन है, और विस्तार के साथ शिवसंहिता कही गयी है जो भगवान सम्पूर्ण देवताओं के लिये दुर्जेय और सनातन है, वे जिसके तटपर सदा सर्वतोभावेन निवास करते है, वही यह नर्मदा का जल ब्रह्मा है, यही विष्णु है, और यही सर्वोत्कृष्ट साक्षात शिव है। यह नर्मदा जल ही निराकार ब्रह्म तथा कैवल्य मोक्ष है, निश्चय ही भगवान शिवने समस्त लोकों का हित करने के लिये अपने शरीर से इस नर्मदा नदी के रूप में किसी दिव्य शक्ति को ही धरती प्रर उतारा है। जो नर्मदा के उत्तर तट पर निवास करते है, वे भगवान रुद्र के अनुचर होते है, और जिनका दक्षिण तट पर निवास है, वे भगवान विष्णु के लोकों में जाते है, ऊँकारेश्वर से लेकर पश्चिम समुद्र तट तक नर्मदा नदी में दूसरी नदियों के पैतीस पापनाशक संगम है, उनमे से ग्यारह तो उत्तर तटपर है, और तेईस दक्षिण तट पर। पैंतीसवां तो स्वयं नर्मदा और समुद्र का संगम कहा गया है, नर्मदा के दोनों किनारों पर इन संगमों के साथ चार सौ प्रसिद्ध तीर्थ है। मुनीश्वर ! इनके सिवाय अन्य साधारण तीर्थ तो नर्मदा के पग पग पर विद्यमान है, जिनकी संख्या साठ करोड साठ हजार है। यह परमात्मा शिव की संहिता परम पुण्यमयी है, जिसमें वायुदेवता ने नर्मदा के चरित्र का वर्णन किया है, जो इस पुराण को सुनता है या पढता है, वह शिवलोक का भागी होता है।

It is divided into 4 padas (parts): Prakriya (chapter 1–6), Anushanga (chapter 7–64),Upodghata(chapter 65–99) & Upasamhara (chapter 100–112). The last 8 chapters (105–112) are called Gayamahatmya praising the Gaya tirtha in Magadha.

Prakriya Pada gves a summary of the contents followed by history of Vyaas and of the divisions of the Vedas. Historical sections are followed by cosmology terminating with destruction of world as the end of a Kalpa.

The Upodghata contains 58 chapters (7-64). The subject of creation continues thru 7-10 chapters with account of origin and duties of Varnas. Next section (11-18) contains directions to practice abstract devotion and obtain knowledge of supreme Being & attributes and power of Shiva.

Chapter 18 : Penances for Yatis

19-20: 33 Kalpas r mentioned, last is called Vishwarupa or Shwet,prevailing Shiv form being white complexion.

chapters 21-27: Illustration of Shiva's supremacy 28: Family of seven rishis -Bhrigu, Marichi, Angiras, Kardama, Pulastya, Kratu & Vasishth.

Chapter 29-33 : Vamshas of Agni, Gods, Swayambhuva, interspersed with story of curse of Daksh and Yugadharma.

34-49:appropriated to Geography, description of Mt. Meru,7 continents & division of universe.Description of Jambudweep found in chpter 36-38.

50-56: Astronomy containing description of Sishumaar, the celestial sphere & a legendary account of Neelkanth

57-64: miscellaneous topics.

Anusanga - Pada contains 35 chapters (65-99) and contains lineages of Prajapati, Kashyap rishi, Varun, Vaivasta, Manu etc. it details funeral rites, Gitalankaar, Soma, Shiv and Vishnu Mahatmya 4th Pada Upasamhara: Pralaya, Recreation & dispeling doubts of Vyaas

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