'लगध ज्योतिष", आचार्य लगध कृत वैदिक कैलेण्डर निर्माण हेतु किया गया श्लाघनीय प्रयास है। इसी का अन्य प्रचलित नाम वेदाङ्ग ज्योतिष है, जिसके दो संस्करण याजुष और आर्च हैं। निरन्तर गतिशील अखण्ड काल को व्यवहारिक प्रयोग में लाने हेतु, यह ग्रन्थ कैलेण्डर निर्माण की पद्धति को प्रतिपादित करता है,ताकि दर्श और पौर्णमासादि क्रियायें उचित व निर्धारित समय पर की जा सकें, फलत: शुभ अदृष्ट की प्राप्ति हो। इस पुस्तक में याजुष ज्योतिष के पद्यों को, उपलब्ध भाष्यों के आधार पर लिखी गयी हिन्दी टीका 'सुयशा' के द्वारा स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। भूमिका के रूप में उन सभी विषयों की चर्चा की गयी है जो याजुष ज्योतिष के कलेवर को समझने के लिये आवश्यक है। यह ग्रन्थ वेदाङ्ग काल में प्रचलित काल गणना की पद्धतियां, तिथ्यानन, भागशेष, काल की इकायियां, नक्षत्र, त्रैराशिक आदि विषयों की विवेचना प्रस्तुत करता है। अत्यधिक समृद्ध ज्योतिष शास्त्र की परम्परा में यह पुस्तक उस नींव के समान है, जिस पर उपरान्त ज्योतिष शास्त्र विषयक सुन्दर भवन का निर्माण हुआ। धर्मशास्त्र में कथित नानाविध धार्मिक क्रियाओं तथा प्रयोगों के उचित काल निर्धारण हेतु यह ग्रन्थ विद्वान् पाठकों के लिये अति उपयोगी है।