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आचार्य दण्डी विरचित काव्यादर्श का स्थान संस्कृत काव्यशास्त्र की परम्परा में सर्वोत्कृष्ट एवं सर्वविदित है। फलत: कालान्तर में इस पर अनेक टीकाओं का प्रणयन किया गया है, जिनमें प्रमुख है लङ्कानिवासी बौद्ध भिक्षु 'रत्नश्रीज्ञान' द्वारा प्रणीत 'रत्नश्री" टीका। प्रस्तुत ग्रन्थ काव्यशास्त्र की अप्रतिम शृङ्खला के अमूल्य रत्न काव्यार्श पर विरचित रत्नश्री टीका के विविध अवययों पर विवेचन प्रस्तुत करता है।