बारहवीं- तेरहवीं शताब्दी के संस्कृत नाट्य साहित्य में समाज चित्रण

बारहवीं- तेरहवीं शताब्दी के संस्कृत नाट्य साहित्य में समाज चित्रण
बारहवीं- तेरहवीं शताब्दी के संस्कृत नाट्य साहित्य में समाज चित्रण बारहवीं- तेरहवीं शताब्दी के संस्कृत नाट्य साहित्य में समाज चित्रण बारहवीं- तेरहवीं शताब्दी के संस्कृत नाट्य साहित्य में समाज चित्रण बारहवीं- तेरहवीं शताब्दी के संस्कृत नाट्य साहित्य में समाज चित्रण बारहवीं- तेरहवीं शताब्दी के संस्कृत नाट्य साहित्य में समाज चित्रण बारहवीं- तेरहवीं शताब्दी के संस्कृत नाट्य साहित्य में समाज चित्रण
Product Code: ISBN 81-7081-307-7
Availability: In Stock
Price: Rs.300 Rs.240
Qty:     - OR -   Add to Wish List
Add to Compare

प्रस्तुत ग्रन्थ को भूमिका एवं परिशिष्ट के अतिरिक्त सात अध्यायो में विभाजित किया गया है.

प्रथम अध्याय में साहित्य और समाज के अन्योन्याश्रय संबन्ध का विवेचन है. साथ ही संस्कृत नाट्य साहित्य और समाज का भी निरुपण किया गया है.

द्वितीय अध्याय में संस्कृत नाटक के उद्भव और विकास पर प्रकाश डाला गया है. विकास शृङ्खला में ही आलोच्य नाट्य साहित्य का परिचय दिया गया है जिससे विषय की पृष्ठभूमि उभर कर पाठक के सामने आ गयी हैं.

तृतीय अध्याय राजनीतिक अवस्था पर प्रकाश डालता है. आलोच्य नाट्य साहित्य के आधार पर तत्कालीन शाषन प्रणाली का निरुपण किया गया है 

चतुर्थ अध्याय में सामाजिक व्यवस्था का विवेचन है. समाजशास्त्रीय अध्यात्मिक दृष्टि से यह विवेचन महत्वपूर्ण है. तत्कालीन समाज के प्रत्येक पक्ष, खान पान, वस्त्र आदि का वर्णन इस अध्याय में किया गया है.

पञ्चम अध्याय तत्कालीन भारत की आर्थिकता, आर्थिकता के साधनो और कला कौशल पर प्रकाश डालता है.

षष्ठ अध्याय में धार्मिक अवस्था का वर्णन है. प्रत्येक धर्म का आलोच्य नाट्य साहित्य के आधार पर विवेचन करने का प्रयास किया गया है.

सप्तम तथा अन्तिम अध्याय में भारतीयो की नैतिक स्थिति का निरुपण किया गया है.

अन्त में उपसंहार के रूप में आलोच्य विषय के सर्वाङ्गीण मूल्याङ्कन के आधार पर समस्त अध्यायों का निष्कर्ष है.

परिशिष्ट में भारत की राजनैतिक, भौगोलिक परिस्थिति को दिखलाया है.

Write a review

Your Name:


Your Review: Note: HTML is not translated!

Rating: Bad           Good

Enter the code in the box below: