देवीभागवत पुराणों में एक उत्कृष्ट रचना है। इसके नाम से स्पष्ट है कि इसकी रचना देवी की प्रशंसा के उद्देश्य से हुई है। यह एक शाक्त ग्रन्थ है जिसमे देवी श्रीभुवनेश्वरी को परम तत्त्व स्वीकार किया गया है। देवी को इसमें प्रधान देवता तथा देवताओं की शक्ति बताया गया है। इसमें १२ स्कन्ध हैं। प्रत्येक स्कन्ध देवी-गायत्री से प्रारम्भ होता है -
सर्वचैतन्यरूपाम྄ ताम྄ आद्याम྄ विद्याम྄ च धीमहि बुद्धिम྄ या न: प्रचोदयात྄।।
इस पुराण के १२ स्कन्धों के ३१८ उपाध्याय हैं और १८००० श्लोक हैं। पुराण के ५ विषयों का विवरण भी यहाँ प्राप्त होता है। सर्ग के अन्तर्गत भगवती जो तुरीय अवस्था में निर्गुण, नित्य तथा योगमाया हैं - अपनी सात्त्विकी, राजसी, और तामसी शक्तियों द्वारा महालक्ष्मी, सरस्वती, महाकाली के रूप में आविर्भूत हुईं। प्रतिसर्ग में ब्रह्मा , विष्णु तथा शिव सर्ग की उत्पत्ति, स्थिति और लय के लिए प्रकट होते हैं। वंश के अन्तर्गत सूर्य तथा चंद्रवंशी राजाओं का वर्णन है। मन्वन्तर के अन्तर्गत विभिन्न मनुओं के कालों का उल्लेख हुआ है। वंशानुचरितं में १८ व्यासों तथा शुक्र का वर्णन हुआ है।
दूसरे स्कन्ध में १२ अध्याय हैं। इनमें मत्स्यगंधा की उतपत्ति, पराशर का उनसे सम्बन्ध, व्यासोत्पत्ति, महभिषा और गंगा कथा, गंगा का शांतनु से विवाह, आड़ वसुओं की उत्त्पत्ति, भीष्म प्रतिज्ञा, धृतराष्ट, पाण्डु और विदुर की उत्पत्ति, कौरव तथा पांडव, यादवों का नाश, कश्यप तथा टैक्सक के मिलने की, जनमेजय के सिंहासनारूढ़ होने की कथाएं मुख्य हैं।
तीसरे स्कन्ध में ३० अध्याय हैं। इसमें जनमेजय के जिज्ञासा प्रकट करने पर नारद देवी तथा उनकी पूजा का विवरण प्रस्तुस करते हैं। इसके अतिरिक्त कुमारी महाविद्या, महामाया, पूर्ण, तथा प्रकृति नाम वाली श्री भुवनेश्वरी देवी का वर्णन मिलता है। देवी के द्वारा विष्णु, ब्रह्मा, तथा शिव को कन्या रूप में परिवर्तित करने की कथा, शिव द्वारा देवी प्रशंसा, देवी का स्वयं विषयक वर्णन, निर्गुण शक्ति तथा पुरुष का वर्णन तथा ऐक्य, तीनों गुणों की प्रकृति का वर्णन, महालक्ष्मी, महासरस्वती तथा महाकाली की प्रशसा इस स्कन्ध के अन्य विषय हैं।
चौथे स्कन्ध में २५ अध्याय हैं जिनमें जनमेजय, व्यास, कश्यप, वासुदेव, अदिति, देवकी, च्यवन, प्रह्लाद, काव्य, कृष्ण तथा बलराम, प्रद्युम्न आदि की कथाएं वर्णित हैं।
पांचवें स्कन्ध में ३१ अध्याय जिनका विषय कृष्ण, देवी महात्म्य, शुम्भ-निशुम्भ कृपा, सुरथ तथा देवी माहात्म्य को सुनाने वाले वैश्य की कथा और देवी पूजा विधि है।
छठे स्कन्ध में ३२ अध्यायों में सृष्टि, इंद्र द्वारा विश्व रूप विनाश, इंद्र-वृत्र युद्ध, देवताओं द्वारा देवी प्रशंसा, नहुष-नाश, दिव्या नदियों, पर्वतों, सरोवरों, देवी से सम्बद्ध स्थानों, माया की प्रकृति तथा शक्ति आदि का वर्णन प्राप्त होता है।
सातवें स्कन्ध में ४० अध्याय हैं जिनमे ब्रह्मा की उत्पत्ति, ब्रह्मा द्वारा देवी पूजन, कश्यप और उसके वंशज, च्यवन, शर्याति, विकुक्षि, दक्ष, सती, मान्धाता, त्रिशंकु, हरिश्चन्द्र,देवी भुवनेश्वरी, तांत्रिक-पूजा-विधि, लक्ष्मी की उत्पत्ति आदि विषयों का उल्लेख हुआ है।
आठवें स्कंध में २४ अध्याय हैं। इसमें विष्णु- सृष्टि, वराह अवतार, मनु के पुट तथा पुत्रियां, भुवनकोश, देवी पूजा, नक्षत्र चंद्र गति, नरकादि विषयों का ज्ञाज्ञान दिखाया गया है।
नवें स्कन्ध में ५० अध्यायों की प्रकृति, कृष्ण से ब्रह्मांडोत्पत्ति, अण्ड से महाविराटोत्पत्ति, सरस्वती पूजा, लक्ष्मी, सरस्वती तथा गंगा में कलह, तुलसी कथा, सावित्री कथा, दुर्वासा कथा आदि वर्णित है।
दसवें स्कन्ध में १३ अध्यायों में स्वयंभू मनु उत्पत्ति, अन्य मनु, सावर्णि मनु के ६ पुत्रों के नाम आदि संबंधी विवरण प्राप्त होता है।
ग्यारहवें स्कन्ध में २४ अध्याय हैं जिनमे सदाचार, भूति-शुद्धि विधि, पंचायत पूजा, पंष महायज्ञ, प्रायश्चित आदि विषयों पर चर्चा की गयी है।
बारहवें स्कन्ध में १४ अध्याय हैं। इनमे गायत्री, देवी प्रशंसा, देवी गायत्री महात्म्य, गौतम कथा तथा देवी भागवत प्रशंसा आदि विषय उल्लिखित हैं।