श्री मार्कण्डेय महापुराण परिमाण में लघु है किन्तु यह पुराण अत्यंत लोकप्रिय तथा नितांत उपादेय है। इसके अध्यायों की संख्या १३४ है तथा श्लोकों की संख्या ९००० है।
पुराण का आरम्भ महाभारत के विषय में जैमिनी द्वारा मार्कण्डेय से पूछे गए ४ प्रश्नों से होता है। ये प्रश्न हैं -
१) निर्गुण वासुदेव ने मानव रूप क्यों धारण किया?
२) द्रौपदी पांच भाइयों की पत्नी क्यों बानी?
३) बलराम ने ब्रह्मा ह्त्या का प्रायश्चित तीर्थ-यात्रा से क्यों किया?
४) द्रौपदी के पांच अविवाहित पुत्र जो स्वयं महँ योद्धा थे, इस प्रकार क्यों असहाय मारे गए, जबकि उनके रक्षक श्रीकृष्ण थे ?
इन प्रश्नों के उत्तर ४-७ अध्यायों में दिए गए हैं।
इसके पश्चात एक नया प्रकरण प्रारम्भ होता है (अ. १०-४४), जिसमे एक पिता पुत्र संवाद दिया गया है। यह महाभारत के पिता-पुत्र संवाद का विस्तृत रूप है। इस पुराण में पुत्र को मेधावी के स्थान पर जड़ कहा गया है। इस प्रकरण में जड़ संसार के दुखों तथा पापियों को मिलने वाले नर्क तथा उनकी यातनाओं का वर्णन है। नर्क वर्णन के बीच में सदाचारी राजा विपश्चितः की एक अद्भुत कथा है। कथा साहित्य का एक रत्न है। प्राचीन काल की ब्रह्मवादिनी मदालसा का पवित्र जीवन चरित्र इस ग्रन्थ में विस्तार पूर्वक हुआ है। मदालसा ने अपने पुत्र से ब्रह्मा ज्ञान का पाठ पढ़ाया, जिससे उसने राजा होने पर भी ज्ञान योग एवं कर्मयोग का समन्वय स्थापित किया।
मार्कण्डेय पुराण में व्रत, तीर्थ या शांति के विषय में श्लोक नहीं हैं परंतु आश्रमधर्म, राजधर्म, श्राद्ध, कर्मविपाक, सदाचार, योग के विवरण मिलते हैं। सृष्टि वर्णन के लिए यह विष्णु का ऋणी है। मन्वंतरों का विस्तृत वर्णन का वैशिष्ट्य है जो औत्तम मनु, तामस, रैवत, चाक्षुस, वैवस्वत, तथा सावर्णि तक है। सावर्णि मन्वन्तर के वर्णन में देवी महात्मय उल्लेख हुआ है। इस पुराण में वैदिक इष्टियों के महत्त्व को दर्शाया है। उत्तम ने मित्रविंदा नामक इष्टि द्वारा अपनी परित्यक्ता पत्नी को पाताल लोक से प्राप्त किया तथा सरस्वती इष्टि से नागकन्या के मूकपन को दूर किया। सारस्वत सूक्तों के जप होने के कारण यह इष्टि इस नाम से पुकारी जाती है .
मार्कण्डेय पुराण में १३ अध्यायों में वर्णित देवी माहात्म्य एक महनीय अंश है जिसमे देवी के विविध रूप - महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती के चरित का वर्णन अत्यंत विस्तार से हुआ है