अर्थतत्त्व के सम्यक् परिज्ञान के लिए ही शब्द का प्रयोग होता है। अतएव शब्द से अर्थ की अभिव्यक्ति कैसे होती है तथा वाणी के इन तत्त्वो में परस्पर क्या संबन्ध है, इसका वैज्ञानिक विवेचन अर्थविज्ञान है और इस विषय में भारतीय मनिषियो ने वैदिक काल से ही पर्याप्त चिन्तन किया है।
भारतीय अर्थचिन्तन-परम्परा में वैयाकरणो एवं साहित्यशास्त्र के आचार्यो का मुख्य योगदान रहा है। मीमान्सा, न्याय एवं बौद्ध आदि दर्शनो के आचार्यो ने भी अर्थतत्त्व सम्बन्धी चिन्तन किया है। इन सभी का प्रस्तुत पुस्तक में तुलनात्मक विवेचन विद्वान लेखक ने किया है।
प्रस्तुत पुस्तक में अर्थविज्ञान का परिचय एवं महत्व, अर्थ के लक्षण एवं स्वरूप, अर्थबोध के साधन, अर्थबोध के बाधक कारण तथा अर्थबोध की दृष्टि से शब्दो का वर्गीकरण, अर्थनिर्णय के साधन, अर्थ के विभिन्न स्तर, अर्थपरिवर्तन की दिशाये तथा उनके कारण, पद एवं पदार्थो का परिशीलन, वाक्य एवं वाक्यार्थ का निरूपण तथा स्फोट सिद्धान्त का अनुशीलन विद्वतापूर्वक किया गया है।