मैं भौतिक विज्ञान नहीं चाहता, धर्म संप्रदाय भी नही, न ही थियोसोफ़ी नाम से प्रसिद्ध् ब्रह्मविद्या, मैं चाहता हूं वेद। वेद है ब्रह्मविषयक सत्य, ब्रह्म का सारत्त्व-सम्बन्धी सत्य ही नही अपितु उसका अभिव्यक्ति-सम्बन्धी सत्य भी। वेद निश्चय ही वन की शरण ग्रहण करने के लिये मार्गदीप नही है, बल्कि जगत् में आनन्द के उपभोग और कर्म के लिये प्रकाश और मार्गदर्शक है, वेद वह सत्य है जो सब मतों से परे है, वह ज्ञान है जिसे प्राप्त करने के लिये मनुष्य का समस्त चिन्तन प्रयत्नशील है - यस्मिन् विज्ञाते सर्व विज्ञातम्, जिसके जान लेने पर सब कुछ ज्ञात हो जाता है। वेद को मैं सनातन धर्म की आधारशिला मानता हूं; और हिन्दूधर्म का अन्तर्निहित गुप्त देवत्व भी। मैं मानता हूं कि इस वेद का ज्ञान और अनुसंधान करना योग्य है और शक्य भी। और मेरा यह विश्वास है - भारत और संसार क भविष्य इसके गवेषण और प्रयोग पर अवलम्बित है। निश्चय ही यह जीवन त्याग के लिये नही किन्तु जगत् मे और जनसाधारण के बीच जीवन-यापन करने के लिये वेद पर आश्रित है।
- श्री अरविन्द, ऐड्वैन्ट, औगस्ट् ७३, पृo १०