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प्रोo ओम्प्रकाश पाण्डेय की परिपक्व लेखनी से प्रसूत प्रस्तुत ग्रन्थ उनके एक दशक के सुदीर्घ अध्यवसाय का परिणाम है. इसमें संपूर्ण सामवेदीय साहित्य का गम्भीर मन्थन करके उसका मर्म मनोयोग से उद्घाटित किया गया है. सामवेदीय ब्राह्मणग्रन्थों को विशेष रूप से केन्द्र में रखकर लेखक ने साम-गान की पद्धति, सोमयागों और अभिचारयागों के अनुष्ठान, साहित्यिक सौन्दर्य, आख्यायिकाओ के रहस्य और भाषातत्त्व का अन्तरङ्ग् उन्न्मीलन किया है. सामवेदीय साहित्य का इतने विशाल पटल पर उपस्थापन इस ग्रन्थ में पहली बार हुआ है. सामवेद को श्रीकृष्ण ने अपना स्वरूप बताया है और उसमें निहित संस्कृति, कला, धर्म और दर्शन को समझाने में यह ग्रन्थ सर्वाधिक सहायक है. संक्षेप में यह ग्रन्थ प्रोo पाण्डेय की जीवनव्यापिनि वेद-साधना का प्रतिनिधि एवं प्रतीक है.