भाषा के अनवरुद्ध प्रवाह, शब्दसौष्ठव,भाव-भव्यता, कोमलकांतपदावली के सुललित विन्यास, शब्दमैत्री. अभिनव भावोद्भावना, चमत्कारी अर्थों की चारु संयोजना, कमनीय कल्पना, विस्मयोत्पादक वर्णन शैली तथा वाणी पर अद्भुत अधिकार की दृष्टी से महाकवि अभिनंद और उनके काव्य रामचरित की संस्कृत-काव्य जगत में कहीं भी तुलना नहीं है - यह कहना अत्युक्ति नहीं है।
रामचरित के अनुशीलन से ऐसा प्रतीत होता है कि कवि के मनोगत अर्थ और उद्भावनाओं को सुन्दरतम रूप प्रदान करके कृतार्थ होने के लिए वाणी हाथ जोड़े कड़ी है, चुनिंदा अवसरोचित शब्द अतर्कित, चिंतित या अनाहूत ही दौड़-दौड़ कर सामने आते गए हैं। कहीं कोई भाव व्यक्त करने में कठिनाई नहीं, अवरोध नहीं। शब्दालंकार और अर्थालंकार अनायास ही किसी कुशल शिल्पी द्वारा रचित रुचिर कंठहार की भांति कमनीयतम शोभा के साथ निबद्ध होते गए हैं। प्रत्येक श्लोक में व्यंग्यविलासजनित माधुर्य का समास्वादन सुलभ हुआ है।
रामचरित व्यवहारज्ञान तो देता ही है, श्रीरामकथा-कीर्तन से अशिव का निवारण भी करता है। कान्तासम्मित उपदेश द्वारा मनुष्य के चरित्र को ऊँचा उठाता है। पद-पद पर रास-भाव की व्यंजनाओं द्वारा परमानन्द सुधा का पान सुलभ कराता है। सुहृदय पाठकों एवं काव्य रसिक रामचरित के लगाकर इस काव्य की नैसर्गिक माधुरी और सात्विक आनंद का अनुभव कर सकेंगे।