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प्राचीन वैदिक काल से ही कर्म कि महत्ता रही है . सायण के अनुसार वेद के सभी मन्त्रो का विनियोग यज्ञ में विहित है. यज्ञ ही कर्म है. कालान्तर में वैदिक यागो का स्वरूप विखण्डित होकर लघु रूप में समाज में दृष्टिगत हुअ और गृहस्थाश्रम के अन्तर्ग विभिन्न अनुष्ठान तथा संस्करादि प्रचलित हुए. ये सभी कर्म वैदिक गृह्यसुत्रो के द्वारा प्रचलित हुए तथा आगम परम्परा के अभ्युदय से इन अनुष्ठानो मेइ आगमोक्त और तन्त्रोक्त विधियओ
कर्म कौमुदी - प्रस्तुत पुस्तक पारस्कर गृह्यसूत्र (शुक्ल यजुर्वेदीय) तथा समातिगम की मिश्रित परंपरा पर आश्रित है
अल्प संस्कृत ज्ञाता भी इसे पढ़कर एक कुशल पुरोहित बन सकता है
इस पुस्तक में नित्य नैमित्तिक, पूजाहोम, अनुष्ठानशांति, संस्कार, गृहकर्म, तथा पुराणपारायणव्रतादिकाम्य कर्मों का सविधि वर्णन किया गया है